शनिवार, 30 दिसंबर 2017

वफ़ा

 ल पड़े वो महफ़िल छोड़ कर,
बात जो ठक से लगी,
कबसे दबा के रखी थी,
वो बात लब पर आ गई,

शहर में सरे आम थे
उनकी वफ़ा के चर्चे कभी,
जो अपनी जबानी हमने कही
तो हर बात से कतरा गईं

खाई थी कसमें मेरी
झूठे इश्क़ की दिन रात जो
जब महफूज देखा मजनू को
तो लैला बहुत घबरा गई,

न शहर में नीलाम हो 
ये इश्क़ का जुनून कभी
हम वही चुप हो गए
जो ये बात जहन में आ गई

ये इश्क़ उमर की चीज़ है
पर है बचपना इसमें भरा,
जब भी सयाना बना इश्क़
बात पर्दे से सड़क पर आ गई,

बहुत सस्ते में बिका महलो में 
कभी,अनमोल झोपड़ों में रहा,
कभी लगे सौ साल तो
कभी इक पल में समझ मे आ गयी।।

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रविवार, 17 दिसंबर 2017

कहो! मेरे पास आओगे तुम?

तुम्हें पाने की जब कभी ख्वाहिश होगी,
तेरे साथ बीते पलों की जब नुमाइश होगी,
जब मेरी कल्पनायें तुम्हे अपना कहेंगीं,
औऱ मेरी भावनाये खुद से झगड़ा करेंगी,
पल भर को दिल को दिलासा देने को,
ना हक़ीक़त में तो, सपनों में सही,
कहो मेरे बनकर कभी मेरे पास आओगे तुम?

जब लोग तुझसे मेरा रिस्ता कहेंगे,
और कुछ लोग मुझे झूठा-सच्चा कहेंगे,
जब दोस्त तेरे मुझे बुरा भला कहेंगे,
कोई भुला दो तो कोई वक़्त बीता कहेंगे,
उनकी हाँ में तो हाँ ना मिलाओगे तुम
हम अपने नहीं तो इतने बिछड़े भी नहीं है,
कहो ये बात उनको कह पाओगे तुम,
क्या कभी मेरे बनकर कभी मेरे पास आओगे तुम?

हम पर क्या गुजरी है
किसी से ना कहेंगे,
हम जिस सफ़र में थे,
अब भी वहीं रहेंगे,
लोग क्या समझेंगे तेरी मेरी सच्चाई,
ये गागर है, सागर की कहानी क्या कहेंगे,
हम अलग है दो शहर दो जिस्म तो क्या,
दिखते हैं दो रास्ते दो किस्म तो क्या,
दिखता है लोगो को बस मायूस चेहरा,
क्या दिखेगा लोगो को दिल मे छुपा राज गहरा,
जिस दिन वफ़ा की बात होगी, तुम्हें आना पड़ेगा
में तेरा हूं तुम मेरे बताना पड़ेगा,
उस दिन तो मेरी बात ना झुटलाओगे तुम,
उस दिन क्या मेरे बनकर मेरे पास आओगे तुम ??

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गुरुवार, 7 सितंबर 2017

मेरे दर्द

ये मेरे नयन अपना वजूद खोते नहीं,
दर्द तो बहुत है बस ये रोते नहीं,

पलके मेरी आँखों पर किसी पल नहीं उतरी,
तेरी याद भरी रातें भी कुछ कम  नहीं गुजरी,

इन धड़कनो की बातें, इन साँसों की बातें,
मेरी दिल की बातें, तेरी यादों की बातें,
मैं कुछ ना कहू तो अच्छा है,
मैं चुप ही रहू तो अच्छा है,

दर्द अब शब्दों से बयां होते नहीं,
पर आँखों से आंसू ना बहे तो अच्छा है,

तू पत्थर होगी मेरे नाम से, मेरी तस्वीर से,
मै बोला ग़र तो तुझमे भी ख्वाब सजा दूंगा,
क्या दशा है मेरी ना कहू तो अच्छा है,
ये डर है की बोला तो तुझे रुला दूँगा || 

रविवार, 16 जुलाई 2017

रानी

तुम हंसी दुनिया की रानी हो,
मुस्कराहट तुम्हारा राज गहना है,
मै मोहब्बत का मुशाफिर हूँ,
मुझे सड़को पे रहना है;

जब तेरी याद आती है,
मैं कोई बात लिखता हूँ,
जब दिल टूट जाता है,
मैं बिखरा साज़ लिखता हूँ;

राज तेरी फिदरत है,
गुलामी मेरी फिदरत है,
कुछ तेरी भी किस्मत है,
कुछ मेरी भी किस्मत है;

तुम मुझे याद आती हो,
और ये पल न बीतेगा,
मै तुमको याद आऊंगा,
जब कोई तुमसे भी रुठेगा;

तुम्हरी याद कहूं किसको,
सब बीता तराना है,
ये दिल मेरा दीवाना है,
ये दिल तेरा दीवाना है || 

रविवार, 9 जुलाई 2017

बारिश

ज रात कुछ ज़्यादा काली,
और हवा में भी ठंडक है,
बादल छाए हैं आसमान में,
घुमड़ घुमड़ कर नाच रहें हैं,
कभी चमकती बिजली भीषण,
पल भर का उजियारा भर कर,
इक्के-दुक्के तारे दिखते,
वो भी हैं छुपते छुपते,
इंद्रधनुष में चांद उगा है,
बादलों में से झांक रहा है,
कभी-कभी काले बादल में,
उसकी छाया भी हो जाती ओझल
लगता है कल बारिश होगी,
शायद कल बारिश होगी।

मिट्टी की भीनी-भीनी ख़ुशबू,
और हवा का शोर-शराबा।
आसमान से कूदी बूंदों,
की छत की टकराहट से,
और बहते पानी की आवाजों में,
बिस्तर पर लेटे-लेटे, मुस्काये,
कौतूहल वश जो मैंने आँखें खोली,
घड़ियों में सुबह के सात बजे थे,
पर छाया था चाहुओर अंधेरा,

चादर की सिलवटों से उठकर,
नींद भरे आलस से चल कर,
ज्यों मैंने खिड़की का दरवाज़ा खोला,
एक हवा का ठंडा झोका,
और कुछ छोटी ठंडी बारिश की बूँदे,
टकरायीं चेहरे पर आ कर,
इक सिथरन सी और ताज़गी,
ऐसे छायी मन के भीतर,
जैसे कोई ठंडे हाँथों,
से छेड़ रहा हो गाल पकड़ कर
खिड़की के बाहर पेड़ो से,
टपक रही बारिश की बूंदे,
नई नवेली नहायी पत्तियाँ,
डोल रही है अपने रस में,
खुश-खुश सी दिखती हैं,
जैसे हस्ती हो इठलाकर।

पत्तियों के झुरमुठ में,
दिखता है डालों में एक झरोखा,
झरोखे में कुछ सूखी घासों का,
एक घोंसला दिखता है,
जिसमें बैठा है एक विहंगम,
अपने छोटे बच्चों को लेकर,
कभी देखता बादल को, 
और कभी बच्चों को ऐसे,
जैसे कुछ उनको सुना रहा है,
किसी बारिश की बीती बातें,
या शायद कुछ सिखा रहा है,
कैसे पंख भीगने से बचना,
या फिर उनको बता रहा है,
ज़िंदगी जीना बहुत कठिन है,
कभी बारिश और धूप कभी,
ऐसे है मौसम के अंदर,
जैसे दुख-सुख रहते हैं,
हर पल जीवन के भीतर।

बादल अब छटते नज़र आते हैं,
फिर से उजियारा छाता है,
पूर्व दिशा में धुन्धला सा,
सूरज निकला आता है,
चलो फिर से एक बार,
खुद को भूल जाये हम,
चलो फिर से आराम छोड़ कर
आराम कमाएँ हम।।

रविवार, 2 जुलाई 2017

मुझे इश्क़ है

मुझे इश्क़ है,
तेरी अदाओं से,
तेरी खव्बों से,
तेरी जुल्फों की महकती खुश्बू से,
तेरी बातों के काले जादू से,
मुझे इश्क़ है,

मुझे इश्क़ है तेरी दुवाओं से,
तेरी फ़िक्र वाले आँसू से,
तेरी बनावटी गुस्से से,
तेरा मेरे सीने में छुपने से,
मुझे इश्क़ है,

मुझे इश्क़ है,तेरे साथ में रहने से,
तेरी आँखों में खोने से,
तेरी यादों में रोने से,
तुझे छुपाकर रखने से,
मुझे इश्क़ है,
हाँ !मुझे इश्क़ है|| 

जैसे तुझे कभी देखा ना हो

यूँ तो कभी कई दिन कई साल युहीं गुजरते हैं; फिर कभी अचानक, किसी रात के किसी समय के एक पल में, ऐसा लगता है मानो मुझमेँ मेरे अंतरंग, मेरे अंतस में कोई बिता लम्हा, कोई बात, कोई पृथक भाव, कोई अपूर्ण इच्छा, कोई ख्वाब, कभी क्रोध सा और कभी प्रेम सा, कुछ झिलमिल सा, कुछ जैसे पानी में कोई परछाई मचलती है, फिर आँखे खुद में मीजने लगती हैं, मेरे हाथ मेरे सीने से मेरे कपड़ो को खींचते हैं, साँसे यूँ चलती है जैसे थकी हो, धड़कने अजीब बेतहाशा भागती हैं, सीने में कुछ ऐसा होता है, जैसे समंदर खुद में कुछ ढूढ़ रहा हो जो हो ही ना; एक चेहरा जो पहले कभी ना देखा हो, एक ख्वाब जो पहले कभी ना सोचा हो, तड़फ ऐसी की जैसे डूबता हुआ कोई किसी से कुछ कहना चाहता हो और कुछ बाकी ना हो, फिर तू आती है नजर यूँ की जैसे तुझे कभी देखा ना हो  |

रविवार, 18 जून 2017

पिता

पिता! पिता इस जीवन का मालिक है,
तुममें दर्द है, तो पिता मरहम है,
तुम परिणाम हो, तो पिता श्रम है,
तुम पथिक हो, तो पिता छाव है,
तुम बेघर हो, तो पिता गांव है,
तुम प्यासे हो, तो पिता जल है,
तुम जीवित हो, तो पिता बल है,
पिता का कर्जदार धरती का हर जीव है,
तुम ऊंचाई हो, तो पिता नींव है,
पिता की डाँट आशीर्वाद है,
बिना डाँट के तो जीवन बर्बाद है,
पिता पत्थर नहीं पिता मोम है,
पिता शोर नहीं पिता ॐ है,
पिता का स्मरण मन का ओमकार है,
पिता की इच्छा जीवन का आधार है,
पिता की संतुष्टि मन की शांति होती है,
बिना पिता के जीवन क्रांति है,
बिना पिता के जीवन का कहाँ सार है,
पिता असंतुष्ट है तो जीना बेकार है || 

रविवार, 28 मई 2017

व्याकुल

यूँ तो तुझसे की वो,
सारी बात पुरानी होती है,
जाने क्यूँ फिर भी वो
सारी रात सुहानी  होती है,
सूरज बूढ़ा होता है,
और रात जवां जब होती है,
आँखों को अपने  देता हूँ,
दिल से बातें होती हैं,
आँखे तो रोई होती हैं,
पर अब दिल भी रोता है,
प्यार बिना इस दुनिया में,
जाने क्या क्या होता है ?

रातें काली होती है,
एक चाय की प्याली होती है,
एक भावना उठती है,
हर बात सवाली होती है,
आखिर क्यूँ ऐसा क्यूँ ,
क्या मैं ही बुरा हूँ सबसे ?
रात गुजर गयी बैठा हूँ,
तेरी याद में जाने कबसे,
हर चीज़ का वादा करके,
उसको मांग चुका हूँ रब से,
फिर क्यूँ  रूठी बैठी है,
कुछ तो कहे वो लब से,

आज जाके देखा है,
अस्को का सागर कैसा होता है,
क्यूँ आँखे रोती है,
और दिल क्यूँ नहीं रोता है,
दिल नीरस तो तब होता है,
जब सबको ये बात कहानी लगती है,
सुनने में कहते है लोग,
ये बात निराली लगती है,

 जब जलता हुआ सूरज,
सागर में जा मिलता है,
सारे फूल झुक जाते है,
दिल का फूल जब खिलता है,
रुठ के जाना मुझसे तेरा,
जब गददारी लगता है,
अब गुजरे की तब गुजरे,
ये पल कितना भारी लगता है,
सावन जब आ जाता है,
बारिश चोटों सी लगती है,
दिल अकेला तो तब होता है,
जब बाहर महफ़िल सजती है,

ये तो ज़मी की फिदरत है,
हर चीज़ को जो वो सूखा देती है,
वरना तेरी याद में रोयें अश्को का,
एक अलग समंदर होता,
आज मै इतना रोऊँगा,
तुझे कोसों दूर रुला दूंगा,
आज तू भी रोयेगी,
और आज मैं तुझको भुला दूंगा || 

रविवार, 21 मई 2017

रिश्ता

जो रिश्ता बादलों का वृक्ष से है,.          
और जल का जो रिश्ता है गगन से;
जो रिश्ता पथिक बनाता राह में है,
और जो पंछी बनाता है शाख से;

मेरी अंतस और मेरी कल्पना में,
ऐसे बनाया है एक रिश्ता, 
तुमने मेरी कलम से;

जैसे सागर की लहरों में उन्माद भीषड़,
और ह्रदय जल होकर भी अचल है;
कहने को शांत दिखती है उच्चिस्ट चोटी,
लेकिन समेटी है अंतस में असंख्य धारा;

अपनी मुस्कुराहट और अपने नयन से,
ऐसे ही कर दिया है मन को अशांत तुमने;

जैसे सती ने शिवा के वैराग्य मन में,
भर दिया था, अनन्त प्रेम की तरलता;
और कृष्ण की अधूरी भावना को,
बस एक राधा की ही पूर्णता का था सहारा;

वैसे ही मेरे मरुस्थल और बेजान मन को,
एक तेरी सरलता की सजलता का आसरा;

ऐ मेरी कल्पना मुझमे यूँ बसो तुम,
बेरंग हृदय को मेरे रंगीन कर दो;
तेरी खुसबू बहने लगे गूथकर मेरे लहू से,
मुस्कुराकर मुझसे  ऐसी बात कह दो || 


गुरुवार, 18 मई 2017

हिन्दुस्तान

तुम भरत रक्त के वंशज हो,
और दधीचि के महादान,
तुम वेदों के नायक हो,
और चक्रपाणि के गीता-ज्ञान;

तुम साक्षी हो महासमर के,
रामायण के, दसग्रीव मरण के,
तुम साक्षी हो महाप्रलय के,
कुरु वंश के, दुर्योधन के;

तुम जन्मदाता हो, देवताओं के,
चक्रपाणि के,महाकाल के,
जगतजयी महादुर्गा के,
जगतपिता महादेव के;

तुम जन्मदाता हो, योद्धाओं के,
आल्हा-उदल पृथ्वीराज के,
गोरा-बादल महाराणा के,
अशोक और बिन्दुसार के;

तुम जन्मदाता हो महागुरुओं के,
देवगुरु के,परशुराम के,
चाणक्या के, गुरुनानक के,
और गुरुवर श्रीमाली के;

उत्तर में नभचुम्बी चोटी,
और दक्षिण में जलधि महान,
तुम अतुल्य हो, अद्वितीय हो,
तुम गौरवमयी हो हिंदुस्तान;

चारो तरफ थी खुशहाली जहाँ,
पुरे विश्व में था यशगान,
सुर भी जिसको करबद्ध नमन कर,
नित नित करते थे प्रणाम;

९०० वर्ष की दुर्लभ दासता,
और क्षीण हुआ भौतिक मान,
क्षीण हुआ तेरा संचित धन,
"सोने की चिड़या" यह गया नाम; 

पर वाह रे हिन्दुतान,
है तेरे पुत्रो पर अभिमान,
सुखदेव भगत और राजगुरु,
विस्मिल नाना और आज़ाद;

असफाक उल्लाह और लाला लाजपत,
बल्ल्भभाई को प्रणाम;
अदभुत है तेरी गोद,
अदभुत वीरों का वरदान;

उदय हुआ जो अस्त था सूरज,
और चमक आया ललाट,
अपने रक्त से चरण धोकर,
संतानो ने लौटया सम्मान;

भारत मेरी जन्मभूमि है,
मुझे है तुझपर अभिमान,
इसी धरा पर पला बढ़ा मैं,
मैं हिंदुस्तान की संतान; 

तुम विकासशील हो, अलौकिक हो,
तुम आदि और अनन्त बनो,
समा लो खुद में समग्र विश्व को,
भारत विश्वगुरु बनो || 

मंगलवार, 9 मई 2017

ख़ूबसूरत

घुलती है मुस्कुराहटें
जब उसके सवालों में,
मानो उगता है कमल
कोई झाड़ियों में छिपकर,
और उगता है सूरज
कहीं हिमालय में;

सजती है जब कभी यूँ ही वो, 
तो लगता है
की पूरी कायनात सजी हो,
चूमती है जब जमी
कदमों को उसके,
तो लगता है  की कहीं दूर
कोई मेनका नची हो;

वो रूठे तो लगे 
हुई कुदरत से कोई रजा हो,
खुदा खुद आकर पूछे 
क्यूँ मुझसे ख़फ़ा हो;

देख ले मुड़कर वो तो जिन्दा कर दें,
जैसे आँखों में उसके कोई ख़्वाब बनाता हो,
वो आँखे जैसे बातें करती हो,
होंठ  खोले तो लगे अधरों पर
बाँसुरी मचलती हो;

उसके लबों ने फिर लबों को छुआ,
धड़कने रूककर चली फिर लड़खड़ा गईं;
पलकें हो गई आँखों से ख़फ़ा,
न झुकी उनपर बेदर्द रुला गईं;
नींद आयी भी तो कुछ यूँ आयी,
मैं रात भर जागा, मुझे रात भर जगा गई;

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

सड़क

मेरा तो दिल दुःख उठता है तुझे देखकर,
एक गुमनाम सी सड़क,
आते जाते हजारो मुशफ़िर;

एक बात बता ऐ सड़क !,
क्या तेरी साँसे नहीं रुकी किसी के लिए ?
क्या तेरी धड़कनो ने किसी का इन्तजार नहीं किया ?

वो राही जो कल गुजरा था,
वो राही जो आज गुजरा था,
वो राही जो रोज गुजरता है;

क्या तूने कभी नहीं चाहा,
उसके दिल में छुप जाना,
उसके छाती से लग जाना,
उसके कदमो से लिपट कर,
उसे रोक लेना;

क्या हक़ था उसे तेरा दिल दुखाने का ?
वो समझता है, तू थकी नहीं अबतक,
उसे रोज-रोज उसके मंजिल पहुँचाते-पहुँचाते;
क्या दिया उसने तुझे कदमों की चोट सिवा ?

देख वो तेरी काली साड़ी,
पुरानी होकर फटने लगी है,
मेरा तो दिल दुःख उठता है तुझे देखकर;
रोज सुबह सुबह वीराने में खड़ा,
जब मै देखता हूँ,
तेरा रोज-रोज उसके घर के बाहर आना,
उसे घर से बुलाना,
कदम-कदम राह बताकर,
उसकी चाहत से उसे मिलाना;
वो पत्थर दिल जब उस अपनी चाहत से मिलता है,
दिल नहीं छिल जाता तेरा, उसकी बेवफ़ाई देखकर ?

क्यूँ बिछा रखा है तूने, 
उसके  लिए अपना आँचल ?
क्या वो गर्म धूप तुझे दर्द नहीं देती ?
क्यूँ समेट नहीं लेती तू अपना आँचल ?
मेरा तो दिल दुःख उठता है, तुझे देखकर,

क्यूँ  गुमशुम सी है, कुछ कहती नहीं?
ख़त्म हो गयी या भूल गयी,
वो कल वो परसो वो वर्षो की शिकायत,
जो तुझे उस राही थी;

क्यूँ हैरान है तू मुझे देखकर,मुझे सुनकर ?
हाँ, मैं ही हूँ  वो राही जो कल गुजरा था,
हाँ, मैं ही हूँ  वो राही जो रोज गुजरता है,
हाँ, मैंने देखा था वो आँसू जो तेरी आँखों से गिरा था,
मुझे याद है वो रात जिस दिन थककर गिरा था 
मै तेरे आँचल में,
तेरे कहने पर वो तेरा शखा आंसमा,
कैसे नीले छींट की चादर मुझे उढ़ा दिया था,
और वो तेरी सहेली यामिनी, 
कैसे ठन्डे समीर का,पंखा झेल रही थी,
कैसे तूने मुझे अपने आँचल में समेट रखा था,
और कैसे तेरी सखी उषा सुबह मुझे उठा रही थी,
तेरे कहने पर,

मेरा तो दिल दुःख उठता है तुझे देखकर || 

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

तुम बातें मेरी सब समझ जाते

तुम बातें मेरी सब समझ जाते,
अगर मेरे दिल में ,
आकर बस जाते;

मन कैसे बेतहाशा दौड़ता है, 
तेरे यादों के आँगन में;
तुम देख पाते,
तो क्या मुस्कुराते ?

कैसे ख़ाक करती जा रही है,
तुझे पाने की ख्वाइश,
अगर एहसास करते तुम,
तो क्या दूर जा पाते?

बर्फ एक बंधन है,
पानी की ख्वाइश नहीं,
तुम पानी से मिलते,
तो समझ जाते,

तुम बातें मेरी सब समझ जाते,
अगर मेरे दिल में आकर बस जाते || 

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

भावनाओं का शहर

जिस नई पक्की सड़क के मोड़पर,
तुम्हारा घर है,
उसी मोड़ से मुड़ती है,
एक कच्ची अदृश्य गली,
जिससे कुछ दूर आगे,
मेरे भावनाओं का शहर है;

वहाँ है एक मेरा खुद का समंदर,
जिसे कभी मैंने अपने आसुंओ से भरा था,
और है एक राई का पहांड है,
जो मुझे तुमसे दूर करने के लिए बना था;

वहाँ बस सावन का मौसम होता हैं,
और वहाँ की बारिशें रंगीन होती हैं,
वहाँ के पेड़ों पर पत्ते नहीं खत उगते हैं,
कुछ सुने, कुछ पढ़े, कुछ कहे-अनकहे खत;

वहाँ हवायें खतों को लेकर उड़ा करती हैं,
और आँधियों  में शब्द चीख़ते हैं,
बारिशों के पानी में मिलकर,
वो पैरों से लिपट कर बहते हैं;

वहाँ तालाबों से निकली चिकनी मिट्टी का एक,
एक कमरे का घर है,
जो बड़ी बड़ी घासों के बीच,
अब भी नजर आता है,
अंदर मकड़ी के जालो के बीच,
एक तस्वीर लगी है,
जिसका चेहरा अब मुश्किल से समझ आता है;

बहुत समय पहले वो किसी का महल था,
और वहाँ घाँसे नहीं फूल उगा करते थे,
वहाँ की हवाओं में जो अल्फाज उड़ा करते थे,
मलय समीर में मिलकर जैसे साज़ उड़ा करते थे;

तब वो समंदर एक कमलों से भरा, 
तालाब  हुआ करता था,
और वो पहांड मैदान हुआ करता था,
किसी की हसीं गुंजती थी बस वहां,
और तितलियाँ उसे ही फूल समझकर,
उसके हाथों पर बैठ जाया करती थी;

पहले मैं वहाँ अक्सर जाया करता था,
उसी महल में बैठकर गुनगुनाया करता था,
अब वो उजड़ गया है, खंडर है,
उसकी हवाओं में भी बस ज़हर है,
पर हाँ! वो कल भी मेरा शहर था,
आज भी मेरा शहर है  | | 

बुधवार, 29 मार्च 2017

कल्पना

ये वक़्त है बिखरा हुआ,
दूरियाँ शमशीर सी,
खूबसूरत है नजारे,
और तेरी याद है;


चाँदनी से नहाकर,
लेकर तेरी तस्वीर दिल में,
रात भर तकता हूँ मैं,
इस इश्क़-ए-कुदरत चाँद को,
और खुद से बोलता हूँ,
तू भी यही तकती होगी,
और तेरी जुल्फ अब,
चेहरे से होगी खेलती,
तूने उसे रीझ कर,
हाथों से पीछे झटका होगा;
                                                                         
जब कभी मैं देखता हूँ,                         
समंदर का गाढ़ा नीला रंग,                   
एक टक बस देखता हूँ,                        
तेरी आँखों को लेकर जहन में,              
जैसे छुपा लेता है समंदर,                     
अपने अंतर में संसार की,                     
ऐसे छुपा लेती थी तू भी,                       
अपने नैनों में,                                       
 मेरे प्यार को;                                     
                                                                              
अक्सर उठकर सुबह बिस्तर से,                             
मैं दौड़ता हूँ, खिड़की की ओर,                
और देखता हूँ, सूरज का वो,                   
तेरे होठों सा लहू-लाल रंग,                      
वो क्षितिज की लालिमा,                                                     
वो गाल हैं जैसे तेरे,                                
और सुऱख लाल सूरज,                          
जैसे तेरा होंठ है;                                    
                                                             
सुबह-सुबह  तैयार होकर,
आईने के सामने,
अपने कॉलर को संभालकर ,
बालों में कंघी डालकर,
अक्सर ख़ुद से बोलता हूँ,
"अच्छे लगते हो ज़नाब",
और हस देता हूँ खुदपर,
की तू होती तो यही कहती;

यदि ये है मेरी कल्पना,   
ये चाँद है चेहरा तेरा,ये समंदर तेरी आँखे है,
ये सूरज तेरे लाल होंठ,
ये सच है,तो अच्छा है,ये झूठ है,तो रहने दो,
मेरी हर सांस में, हर धड़कन में,
मेरी उठती गिरती पलकों में,
मेरी जहन में, मेरी बात में,
मेरे दिल में, मेरी याद में,    
तू मेरे साथ है,तू मेरे साथ है;   

तू मुझसे दूर कहाँ,       
इस चाँद का दीदार कर,  
मैं बस तेरा हूँ,
इस एहसास का एहसास कर,
अपने दिल पर हाथ रख, 
और मुझसे बात कर,   
मैं लौट आऊंगा, बस मेरा इंतजार कर,
प्यार कर मेरी जान, मुझे प्यार कर;
प्यार कर मेरी जान, मुझे प्यार कर॥ 

गुरुवार, 23 मार्च 2017

अश्रुमगन

भी मिलना, तुम्हे हम सैलाब दिखाएगें
अपने टूटे हुए अश्रुमगन ख्वाब दिखाएगें;

जो जो तुमने कहा था, 
मैं अल्फाज नहीं भूलता,
मैं रो लेता हूँ कभी कभी, 
पर किसी से नहीं बोलता;

हर बार कलम को नकार देता हूँ,
जो तेरी याद में लिखी थी, 
पर वो डायरी नहीं खोलता;

यही मौसम है, 
जब अलग हुए थे हम दोनों,
यही मौसम था , 
जब साथ रहने का वादा किया था;

तेरे चहरे पर आज वो मुस्कराहट नहीं है,
हाँ, मेरे मिलने का वो लहज़ा भी अब नहीं है;

शनिवार, 18 मार्च 2017

मुझे आदत है

मुझे आदत है तेरे ख्वाबों की,
अकेले चाँद की,तन्हा रातो की,
अकेले बोलकर फिर,
सुन लेने वाली बातो की,
अकेले सावन की, 
अकेली बरसातों की;

तू कहीं दूर खुश है,
सपनों की लहरों में,
मैं साहिल हूँ,मुझे आदत है,
लहरो के लातों की;

तू भी कभी एक जख्म देने को ही आ,
मुझे आदत है, सहने की,
चोट आते जातो की,
मुझे आदत है,तेरे ख्वाबों की,
मुझे आदत है,तेरी यादों की;

मैं पत्थर था कभी,
अब टूट कर बिखरना चाहता हूँ,
तू मूरत थी प्यार की,
मैं भी संवारना चाहता हूँ; 

किसी बहाने से मुझे
संवारने के लिए आ,
मेरी जिन्दगी, मेरे साथ,
एक पल गुजारने के लिए आ,
मैं जीना चाहता हूँ,
मेरी जिन्दगी की डोर,
संभालने के लिए आ;

तुझे कसम है मेरे प्यार की,
मेरे अनकहे रिश्ते नातों की,
मेरे साथ गुजारे पलों की,
मेरे याद में गुजरी रातों की,
मेरे हर बात की,मेरे साथ की बरसातों की;

मुझे आदत है, तेरी यादों की। 

रविवार, 12 मार्च 2017

सवाल

क सवाल है कमाल ही,
मिलता नहीं जवाब भी;

हम थे कभी अपने, 
तो अब इतने फासले क्यूँ है,
गर हम अज़नबी थे, 
तो फिर ये यादें क्यूँ है;

अगर हम दोस्त थे, 
तो हमारा हक़ कहाँ है अब,
गर हम दुश्मन थे, 
तो फिर हमें मिटाया क्यूँ नहीं;

अगर इश्क़ था मुझसे, 
तो जताना चाहिए था;
गर नफरत थी,
तो बताना चाहिए था। 

गुरुवार, 9 मार्च 2017

घर

र से दूर हूँ तो,
एक मसला याद आता है,
जिस मंजिल की तम्मना थी,
वो रास्ता तो घर तक जाता है;

जब कुछ पाने की ख्वाइश में,
मैं घर से निकलता था,
कुछ बेड़ियाँ थी उस घर मे,
जो मुझे बाध लेती थी;

क्यूँ टूट के भी हस्ती थी बेड़ी,
क्यों फूट के रोता था कमरा,
और देखकर गठरी,
क्यूँ बुजुर्ग मुस्कराते थे ?

आज घर से जो निकला हूँ,
तो सब समझ आता है,
आज फिर से वही घर,
याद आता है;

बिस्तर जोर से हस्ता है,
तकिया लगती है मुस्कराने,
जब आराम छोड़कर उठता हूँ,
मैं आराम कमाने;

बचपन में एक तोता पाला था,
आज वो तोता याद आता है,
जब मुझे देखता तो,
खरी-खोटी सुनाता था;
कहता, जब में जंगल में था,
परिंदों का राजा था,
जो आज मुझे इतना सा खाने को देते हो,
इससे ज्यादा मैं पेड़ो पर खा जाता था;

कुछ महीने बाद पिजरा तोड़ दिया हमने,
जा उड़ जा तोते तुझे छोड़ दिया हमने,
वो टूटे भाग तक जाता,
फिर लौट आता था,
वो आज़ाद था लेकिन कही नहीं जाता था,
अपने चोंच से उठाकर, तारो को लगाता था,
जब मैं देखू ,तो गुस्सा कर बैठ जाता था;

फिर एक दिन यूँही जब,
देखना छोड़ दिया हमने,
उसने गुस्से में कहा मुझसे,
क्यूँ घर मेरा तोड़ दिया तुमने,

तब हँसा था मैं,
कुछ समझ नहीं पाया था,
आज आँखे भारी होती है,
जब वो पिजरा याद आता है;

नोटों से भरा थैला लेकर,
जब अपने दरवाजे पर पंहुचा मैं,
मेरे बूढ़े घर ने कुछ कहा की रो पड़ा मैं;

जिसे मिट्टी का खंडर कह कर,
छोड़ आया था,
कुछ बाकी नहीं रहा इसमें,
चिल्लाकर बोल आया था;

जब लौटा वहाँ तो,
उसने बाहें खोल दी,
जो कैद थी उसमे याँदे,
मेरे पुरखों की बोल दी,

सुख की ख्वाइश में,
मैं सुकून छोड़ आया था,
मै चाँदी कमाने निकला था,
हीरा  छोड़ आया था। 

सोमवार, 6 मार्च 2017

राधा कहे किसे

आप सब यह बात जानते है, की कृष्ण राधा से बहुत प्रेम करते थे लेकिन कंस को मारने के लिए और अपने माता पिता को उसकी कैद से छुड़ाने के लिए उन्हें वृन्दावन से मथुरा जाना पड़ा। कंस को मारने के बाद वो वहाँ के राजा बने। फिर कुछ समय बाद वो द्वारिका चले गए ।वहाँ जाकर उन्होंने रुखमणी से विवाह कर लिया। 
यह कविता कृष्ण और राधा के वियोग की कविता है। 

क साख पर बैठा,
सोचता बस यही,
कोई दिखाई नहीं देता,
की अपना कहे जिसे,
बहुत सुन्दर है मथुरा,
बहुत चाहने वाले लोग,
पर कृष्णा यही सोचे,
की राधा कहे किसे;

कभी कलम उठाये,
तो शब्द भूल जाये,
बाँसुरी उठाये कभी,
तो राग भूल जाये,
होंठ कहे राधा,
और नींद टूट जाये,
लहू आसार बहे आँसू,
और सांस छूट जाये;

तकिये को लगा के सीने से,
चक्रधारी रोयें,
बहुत दर्द है राधा,
तुमसे मिले कैसे,
कितना भारी है मुकुट,
कितना भारी है सुदर्शन,
मैं धीश यहाँ का,
इनसे कहू कैसे;

कितना प्यारा था मोहन,
कितना गैर है राजा,
कहाँ छोटा सा वृन्दावन,
कंहाँ मेरी पहुँच से ज्यादा,
जब मेरी मिट्टी के घर पर भी,
तेरा हक़ था आधा,
तो क्या अब गैर है गिरधारी,
की तुमपर हक़ नही राधा;

तुमसे मिले कैसे,तुमसे कहे कैसे,
दूर तक कोई दिखायी नहीं देता,
की अपना कहे जिसे, की राधा कहे जिसे॥ 

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

नकाब

र गम को अमानत समझ कर समेट रखा है,
इस चेहरे पर ख़ुशियों का नकाब लपेट रखा है,


मत देख मेरी आँखों में यूँ, 

ये छलक जाएंगी,

अश्को का इन्होंने,

एक समंदर सोख रखा है,

मेरे जनाज़े पर मत रोना,

मैं ना रहू तो क्या,

तेरी खुशियों की खातिर मैंने,

खुद को ही बेच रखा है;

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

समझ लेना तुम्हे प्यार हो गया..

गाने नशे जैसे चढ़ने लगे,
पैर सुरो पर थिरकने लगे,
आईना जब सुन्दर लगने लगे,
ख्वाबो में कोई रोज मिलने लगे,
समझ लेना तुम्हे प्यार हो गया; 

गाली सॉरी में बदलने लगे,
थैंक्यू का रंग चढ़ने लगे,
दोस्त जब बोर लगने लगे,
एसमस रोज रोज पढ़ने लगे,
समझ लेना तुम्हे प्यार हो गया;

बन ठन के घर से निकलने लगे ,
शीशो को देख मुस्कराने लगे,
सुबह शाम मंदिर जाने लगे,
नफरत भी प्यार से जातने लगे,
समझ लेना तुम्हे प्यार हो गया;

एक टाइम में दो क्लेस जाने लगे,
सूखे पत्तो से दर्द जातने लगे,
तकिये को सीने से लगाकर,
शायरी उसको सुनाने लगे,
समझ लेना तुम्हे प्यार हो गया;

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

हर हर महादेव

क हाथ में त्रिशूल कठोर,
दूजे हाथ वरदान की सरिता;

सर में जिसके चन्द्रमा साजे,
और गले में काल भुजंगा;

कंठ में जिसके प्रचंड गरल,
और जटा में अमृत गंगा ;

मुस्कान जिसकी सृष्टि की रचना,
और क्रोध प्रलय बाण है;

वो आदि-अनंत, वो आशुतोष ,
वो अखिलेश्वर,वो शिव शंकर है;

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कोई शख़्स

रात भर मैं बुत बनकर बैठा रहा,
रात भर कोई शख़्स याद आता रहा;

आँखे रूठी रही, मैं भी रूठा रहा,
बिना हलचल किए दिल मनाता रहा;

आँखे सोई नहीं कई रात से,
ख्वाब फिर भी तेरा मचल जाता रहा;

भुलाना चाहा तुझे हर पल,हर क्षण,
भूलने के बहाने तू याद आता रहा;

तेरी यादें लुभाये मुझे रात भर,
तेरी तस्वीर जगाए मुझे रात भर;

मैं उलझा रहा, कोनो में बैठा,
तुझे सोच-सोच आँसू बहाता रहा;

रात भर मै बुत बनकर बैठा रहा,
रात भर कोई शख़्स याद आता रहा। 

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

गलतियाँ

तुझसे कभी ना मिलू,
वो तेरी गलतियाँ तो याद है;
तुझसे नफरत करु लेकिन,
वो खता नहीं मिलती;

                            जो अच्छे लगे ऐसे,
                            बहुत है, यार यहाँ;
                            पर जैसे तू मुस्कराती थी,
                            वो अदा नही मिलती,

कुछ भी पा सकता हूँ,
वो औहदा है मेरा;
पर तुझे भूल जाऊ जाकर कही,
वो जगह नही मिलती;

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

मेरी डायरी

ई मुद्दतो से सुना नहीं 
कोई लफ्ज तेरे लबों से,
कलम मेरी अड़ के बैठी है 
की मुझे आगे मत लिखाओ;

डायरी कहती है की 
कोरा रहना मंजूर है,
कहानी अधूरी ही अच्छी है, 
आगे मत बढ़ाओ;
मैं भी उसी की हूँ ,
जिसका दिल है तेरा,
कुछ और लिख कर मुझे,
किसी और का मत बनाओ;

जहाँ का इश्क़ और है, 
तेरी यारी और है,
यक़ीनन बहुत होंगे तेरे अच्छे दोस्त;
पर उनकी बात और है, मेरी कहानी और है;

मेरे दिलोदिमाग पर हुकूमत है तेरी,
तेरी बात और है, तेरी निसानी और है;
चाह कर भी निज़ात मुमकिन नहीं जिससे,
जैसे कब्ज़ा करना और है, तख़्त-ए-सुल्तानी और है;..

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

तू

भी नाम भूल जाऊ,
कभी बात भूल जाऊ,
तुझे सोच कर क़ुछ कहू,
तो अल्फाज भूल जाऊ;

        चाहू कभी जो की,
        तेरी यादों को भूल जाऊ,
        तू जहन  में हस्ती रहे,
        मैं  खुद को भूल जाऊ;

तेरी तस्वीर में यूं खोया हूं,
गुमनाम हो गया हूँ,
तेरा कब्ज़ा है मुझपर,
या मैं गुलाम हो गया हूँ;

बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

हुस्न

यूँ तो मेरे एहसास किसी अल्फाज के मोहताज नहीं,


बंद कमरे ली सिसकियां भी मीलो सफ़र करती है,


फिर भी आया हूँ तेरे शहर तुझसे मिलने,


सुना है, तेरे हुस्न के आगे रौशनी, अंधेरो में गुजर करती है;.....

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

याद आती हो क्यूँ ?


भू लना चाहता हूँ तुम्हे, 
अब याद आती हो क्यूँ ?
कभी पलके झुका कर,
कभी ख्वाबो में आकर,
मुझे नींदों से उठाकर,
तड़पाती हो क्यूँ ?
तुम, मुझे बार बार याद आती हो क्यूँ?

रोज सोचता हूँ,
भुला दूँ  तुम्हे,
रोज-रोज ये बात ,
भुला जाती हो क्यूँ ?
दिल भी अड़ चुका है बच्चा बनकर ,
कहता है की पूरा आसमां दो मुझे,
टुकड़ो में धूप देकर जलाती हो क्यूँ ?
तुम, मुझे बार बार याद आती हो क्यूँ?
                                                                                                                                                                 
जब किया था साथ चलने का वादा तुमने,
तो भीड़ में हाथ अपना छुड़ाती हो क्यूँ ?
कभी बनती हो आंसू ,
फिर छाती हो पलकों पर,
फिर पलकों से यूं छलक जाती हो क्यूँ ?
तुम, मुझे बार बार याद आती हो क्यूँ ?

नहीँ भुला सकता,
ग़र तुम्हे मालूम  है,
तो यादो की सुइयाँ ,चुभाती हो क्यूँ ,
आओ ना ,अब आ भी जाओ ,
कितना बुलाऊ तुम्हे नहीं आती हो क्यूँ 
तुम, मुझे बार बार याद आती हो क्यूँ ?

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

शब्द

हम जिसे चाहते है , उसको एक बात बोलने से पहले कई बार सोचते है ,की उसे पसंद आएगा या नहीं , कहीं वो बुरा तो नहीं मान जाएगी , कहीं वो दूर तो नहीं हो जाएगी और कभी वो बात बोल नहीं पाते , जो वास्तविक में बोलना चाहते हैं।  हम अक्सर सोचते है , की कुछ ऐसा बोले की वो समझ जाये  की हम  उसे कितना चाहते  है ,पर वो क्या है  हमें पता नहीं होता। 
 यह कविता इसी सन्दर्भ में है ,अगर आपके साथ कभी ये हुआ है , तो  यह कविता आपको जरूर पसंद आएगी। ...

यूं तो मैं एक रसिक कवि हूं,
पर  मैं जो आज बोल रहा हूं,
मेरे जहन में एक दुविधा है,
मैं वो राज खोल रहा हूं;

मैंने इंग्लिश, हिंदी, भोजपुरी,अवधी ,भाषा पढ़ी है,
पर जिस बात पर मेरी जिव्हा अड़ी है,
जिस बात पर मेरी लेखनी कई दिन से मौन है,
और मेरी डायरी पूछ रही की वो कौन है;

कई शब्द लिखे मैंने,
कई शब्द नकार दिए,
कई पन्ने नए उठाये,
कई पन्ने फाड़ दिए;

जो मेरी प्रेमिका है,
और मेरा पहला प्रेम है,
मैं चाहता हूं उसे बताना,
की वो कितनी अहम् है;

मैं आज एक प्रेम पत्र लिख रहा हूं,
इन सब भाषाओ में एक शब्द ढूढ रहा हूं,
जिसमे शामिल मेरे अंतरंग की बात हो,
जिसमे छुपा मेरे मोहब्बत का साथ हो,
जिसमे बयां मेरे इश्क़ की हद हो,
और जिसमे बयां मेरे सारे खत हो;

वो शब्द जो कृष्णा ने राधा से कहा था,
वो शब्द जो हीर ने रांझे से कहा था;

एक शब्द जिसमे न चाँद हो, न दिन हो, न रात हो,
एक शब्द जिसमे सिर्फ उसकी बात हो,
एक शब्द जिसमे उसे एहसास हो,
की ऐ मेरी दिलरुबा ! तुम कितनी ख़ास हो;

आज मैंने प्रेम की सारी किताबे छान ली,
जो ग़ालिब ने कहा, जो मीर ने कहा,
सबकी सुनी, सबकी मान ली,
पर वो अल्फाज कहीं मिलता नहीं;

काश उन किताबो को मजनू ने खुद लिखी होती,
काश कृष्णा ने प्रेम की भी की एक गीता कही होती,
 सोचता हूं रांझे ने खत में क्या लिखा होगा,
अब समझ आता है हीर लिखा होगा,
और बस हीर लिखा होगा;

जब ली करवटें रेत में,तड़फ कर मजनू ने,
महलो में थी लैला,फिर भी न सो सके,
कोरा कागज भी भेजा होगा, हीर ने अगर,
मुमकिन नहीं होगा की राँझा न पढ़ सके;

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

पहला प्यार

अगर आप आज भी अपनी  10th क्लास के प्यार को  याद करते है, तो ये कविता आपको जरूर पसंद आएगी। 
          
वो आशिकी के दिन थे,
बस प्यार ही जताना था,
वादों की दुनिया थी,
कसमो का जमाना था,
आखों में नमी हो फिर भी मुस्कराना था,
आखिर कितना चाहता हूं तुम्हे,
हर पल यही तो बताना था,
वो ख्वाबो की दुनिया में एक आशियाना था,

खुद भी नाराज था,
तुम्हे भी मनाना था,
स्कूल के दिनों में,
वो पिक्चर भी जाना था,
पापा के मोबाइल पर,
तेरे फ़ोन आना था,

सबकुछ पा चुका था,
अब प्यार ही निभाना था,
चाहत की किस्ती में,
बस गीत गुनगुनाना था, 
तेरे जन्मदिन पर वो,
पैसे चुराना था,
आंटी के बाग़ से, 
गुलाब भी लाना था,
पकड़ा गया, तो मंदिर बहाना था,
चाहत के देवी तुम, पंडित खुद को बताना था,

एक बार बुलाऊ, 
तेरा नंगे पॉव आना था,
क्या दिन थे वो ,
क्या वो आशियाना था,
वो दसवी क्लास थी,
क्या क्या बहना था,

फ्यूचर प्लानिंग का डिस्कशन रोज दोहराना था,
एक बात दिल में थी, सबसे उसे छुपाना था,
भाभी दिखी थी कल, दोस्तों का चिढाना था,
फिर दिल में खुश होकर, उन्हें हड़काना था,
बस फ्रेंड है यार, यही गीत गाना था,

अब तुम नहीं हो साथ हमारे,
बस तुम्हारी याद है,
क्या मैं भी तुमको याद हूँ,
जैसे तू मुझको याद है,
तेरा वास्ता नहीं रहा मुझसे अब ,
तेरे साथ का जो वक़्त था तन्हा ही गुजरता है,
तेरी तस्वीर अब भी रखी है पर्स में,
तेरी याद जब भी आती है,बस दिल जलता है,
सबके सामने हसता हूं, तेरा नाम सुनकर,
वो चुभने का दर्द मेरा दिल कितना सहता है,

खैर तू खुश है शायद मेरे बिना भी,
पर तू आएगी जरूर एक दिन,
ये मेरा दिल कहता है,..

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

समझ में क्यों नहीं आता?

हुत नाजुक सा है लम्हा,
बहुत नाजुक है ये रिस्ता,
उस पर हक़ नहीं मेरा,
समझ में क्यों नहीं आता ?

                                ये चाँद जो कल तलक,
                                इतना प्यारा लगता था,
                                ये दाग भी था उसमे,
                                नजर में क्यों नहीं आता ?

ये क्या बच्चो सी ज़िद है,
ये कैसे आंसू आ गए,
इतना नया लिवास है,
कुछ पसंद क्यों नहीं आता ?

                                मेरा दिल टूटा है,
                                मेरा यार रूठा  है,
                                दर्द इतना ज्यादा है,
                                मैं सह क्यों नहीं पाता ?..

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

हमसफ़र

मेरी आँखों में एक खाव्ब है,
तू मेरी हमसफ़र बने;

तेरी ऊँगली में ऊँगली डाले,
सारी-सारी रात चले;

काली काली सड़के हो,
रोड लाइटे मद्धम हो,
हल्की  हल्की बारिश हो,
तुमसे मिलने की साजिश हो;

फिर तू आकर सीने में,
ऐसे यूं कुछ छूप जाये,
खुदा से एक फरियाद करु,
चलती जिंदगी रुक जाये;

तेरी गोद में सर रख कर,
तेरी जुल्फों से खेलू ,
जो रखा है दिल में जाने कबसे,
सब कुछ तुझसे कह लूँ;

कभी छुपाकर छतरी, 
बारिश में भीग जाऊ,
तेरे पलकों पर जो बूंद गिरे,
अपने होंठो से उसे उठाऊ;

एक ख्वाब अभी बाकी है,
एक छोटा सा घर बनाऊ,
उड़ती हो, फिसलती हो, नदियों से मचलती हो,
पत्तियां जहाँ पहुँचने को मिलो सफर करती हो;

पानी के आईने हो,
मिट्टी का हो घर,
देखने को तेरा चेहरा,
सारी सारी रात भर;.....

इश्क़

पने दिल को जला कर ख्वाब पालते देखा है,
ये इश्क़ की बिसाद है,
यहाँ मैंने खुदा बदलते देखा है;

मुशाफिर जो इश्क़ के नक्से पर जाता है,
वो छाता लेकर तो जाता है,
मगर भीग जाता है;

सच है की उसे  बारिश में देखना अच्छा लगता है,
बीमार है, मगर कहता है,
मुझे भीगना अच्छा लगता है;

समां को किसी बहाने से छूना अच्छा लगता है,
पर पतंगा जल के कहता है,
मुझे जलना अच्छा लगता है;

किस तलवार पर मुनासिब है मेरी गर्दन बता दो,
इश्क़ करना गुनाह है तो मुझे सजा दो,
यूँ मरने की ख्वाइश आशिक तमाम रखता है;

दोस्त इश्क़ यारियाँ नहीं रखता,
गुलाम रखता है;

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

यादें

तेरी यादे कहू किसको, सब बीता तराना है,

ये दिल मेरा दीवाना है ,ये दिल तेरा दीवाना है,

कई साल गुजरे है तेरा नाम ले ले कर,

कई लोग कहते है की तुझको भूल जाना है,