गुरुवार, 23 मार्च 2017

अश्रुमगन

भी मिलना, तुम्हे हम सैलाब दिखाएगें
अपने टूटे हुए अश्रुमगन ख्वाब दिखाएगें;

जो जो तुमने कहा था, 
मैं अल्फाज नहीं भूलता,
मैं रो लेता हूँ कभी कभी, 
पर किसी से नहीं बोलता;

हर बार कलम को नकार देता हूँ,
जो तेरी याद में लिखी थी, 
पर वो डायरी नहीं खोलता;

यही मौसम है, 
जब अलग हुए थे हम दोनों,
यही मौसम था , 
जब साथ रहने का वादा किया था;

तेरे चहरे पर आज वो मुस्कराहट नहीं है,
हाँ, मेरे मिलने का वो लहज़ा भी अब नहीं है;

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