शनिवार, 30 दिसंबर 2017

वफ़ा

 ल पड़े वो महफ़िल छोड़ कर,
बात जो ठक से लगी,
कबसे दबा के रखी थी,
वो बात लब पर आ गई,

शहर में सरे आम थे
उनकी वफ़ा के चर्चे कभी,
जो अपनी जबानी हमने कही
तो हर बात से कतरा गईं

खाई थी कसमें मेरी
झूठे इश्क़ की दिन रात जो
जब महफूज देखा मजनू को
तो लैला बहुत घबरा गई,

न शहर में नीलाम हो 
ये इश्क़ का जुनून कभी
हम वही चुप हो गए
जो ये बात जहन में आ गई

ये इश्क़ उमर की चीज़ है
पर है बचपना इसमें भरा,
जब भी सयाना बना इश्क़
बात पर्दे से सड़क पर आ गई,

बहुत सस्ते में बिका महलो में 
कभी,अनमोल झोपड़ों में रहा,
कभी लगे सौ साल तो
कभी इक पल में समझ मे आ गयी।।

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रविवार, 17 दिसंबर 2017

कहो! मेरे पास आओगे तुम?

तुम्हें पाने की जब कभी ख्वाहिश होगी,
तेरे साथ बीते पलों की जब नुमाइश होगी,
जब मेरी कल्पनायें तुम्हे अपना कहेंगीं,
औऱ मेरी भावनाये खुद से झगड़ा करेंगी,
पल भर को दिल को दिलासा देने को,
ना हक़ीक़त में तो, सपनों में सही,
कहो मेरे बनकर कभी मेरे पास आओगे तुम?

जब लोग तुझसे मेरा रिस्ता कहेंगे,
और कुछ लोग मुझे झूठा-सच्चा कहेंगे,
जब दोस्त तेरे मुझे बुरा भला कहेंगे,
कोई भुला दो तो कोई वक़्त बीता कहेंगे,
उनकी हाँ में तो हाँ ना मिलाओगे तुम
हम अपने नहीं तो इतने बिछड़े भी नहीं है,
कहो ये बात उनको कह पाओगे तुम,
क्या कभी मेरे बनकर कभी मेरे पास आओगे तुम?

हम पर क्या गुजरी है
किसी से ना कहेंगे,
हम जिस सफ़र में थे,
अब भी वहीं रहेंगे,
लोग क्या समझेंगे तेरी मेरी सच्चाई,
ये गागर है, सागर की कहानी क्या कहेंगे,
हम अलग है दो शहर दो जिस्म तो क्या,
दिखते हैं दो रास्ते दो किस्म तो क्या,
दिखता है लोगो को बस मायूस चेहरा,
क्या दिखेगा लोगो को दिल मे छुपा राज गहरा,
जिस दिन वफ़ा की बात होगी, तुम्हें आना पड़ेगा
में तेरा हूं तुम मेरे बताना पड़ेगा,
उस दिन तो मेरी बात ना झुटलाओगे तुम,
उस दिन क्या मेरे बनकर मेरे पास आओगे तुम ??

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