घर से दूर हूँ तो,
एक मसला याद आता है,
जिस मंजिल की तम्मना थी,
वो रास्ता तो घर तक जाता है;
जब कुछ पाने की ख्वाइश में,
मैं घर से निकलता था,
कुछ बेड़ियाँ थी उस घर मे,
जो मुझे बाध लेती थी;
क्यूँ टूट के भी हस्ती थी बेड़ी,
क्यों फूट के रोता था कमरा,
और देखकर गठरी,
क्यूँ बुजुर्ग मुस्कराते थे ?
आज घर से जो निकला हूँ,
तो सब समझ आता है,
आज फिर से वही घर,
याद आता है;
बिस्तर जोर से हस्ता है,
तकिया लगती है मुस्कराने,
जब आराम छोड़कर उठता हूँ,
मैं आराम कमाने;
बचपन में एक तोता पाला था,
आज वो तोता याद आता है,
जब मुझे देखता तो,
खरी-खोटी सुनाता था;
कहता, जब में जंगल में था,
परिंदों का राजा था,
जो आज मुझे इतना सा खाने को देते हो,
इससे ज्यादा मैं पेड़ो पर खा जाता था;
कुछ महीने बाद पिजरा तोड़ दिया हमने,
जा उड़ जा तोते तुझे छोड़ दिया हमने,
वो टूटे भाग तक जाता,
फिर लौट आता था,
वो आज़ाद था लेकिन कही नहीं जाता था,
अपने चोंच से उठाकर, तारो को लगाता था,
जब मैं देखू ,तो गुस्सा कर बैठ जाता था;
फिर एक दिन यूँही जब,
देखना छोड़ दिया हमने,
उसने गुस्से में कहा मुझसे,
क्यूँ घर मेरा तोड़ दिया तुमने,
तब हँसा था मैं,
कुछ समझ नहीं पाया था,
आज आँखे भारी होती है,
जब वो पिजरा याद आता है;
नोटों से भरा थैला लेकर,
जब अपने दरवाजे पर पंहुचा मैं,
मेरे बूढ़े घर ने कुछ कहा की रो पड़ा मैं;
जिसे मिट्टी का खंडर कह कर,
छोड़ आया था,
कुछ बाकी नहीं रहा इसमें,
चिल्लाकर बोल आया था;
जब लौटा वहाँ तो,
उसने बाहें खोल दी,
जो कैद थी उसमे याँदे,
मेरे पुरखों की बोल दी,
सुख की ख्वाइश में,
मैं सुकून छोड़ आया था,
मै चाँदी कमाने निकला था,
हीरा छोड़ आया था।
एक मसला याद आता है,
जिस मंजिल की तम्मना थी,
वो रास्ता तो घर तक जाता है;
जब कुछ पाने की ख्वाइश में,
मैं घर से निकलता था,
कुछ बेड़ियाँ थी उस घर मे,
जो मुझे बाध लेती थी;
क्यूँ टूट के भी हस्ती थी बेड़ी,
क्यों फूट के रोता था कमरा,
और देखकर गठरी,
क्यूँ बुजुर्ग मुस्कराते थे ?
आज घर से जो निकला हूँ,
तो सब समझ आता है,
आज फिर से वही घर,
याद आता है;
बिस्तर जोर से हस्ता है,
तकिया लगती है मुस्कराने,
जब आराम छोड़कर उठता हूँ,
मैं आराम कमाने;
बचपन में एक तोता पाला था,
आज वो तोता याद आता है,
जब मुझे देखता तो,
खरी-खोटी सुनाता था;
कहता, जब में जंगल में था,
परिंदों का राजा था,
जो आज मुझे इतना सा खाने को देते हो,
इससे ज्यादा मैं पेड़ो पर खा जाता था;
कुछ महीने बाद पिजरा तोड़ दिया हमने,
जा उड़ जा तोते तुझे छोड़ दिया हमने,
वो टूटे भाग तक जाता,
फिर लौट आता था,
वो आज़ाद था लेकिन कही नहीं जाता था,
अपने चोंच से उठाकर, तारो को लगाता था,
जब मैं देखू ,तो गुस्सा कर बैठ जाता था;
फिर एक दिन यूँही जब,
देखना छोड़ दिया हमने,
उसने गुस्से में कहा मुझसे,
क्यूँ घर मेरा तोड़ दिया तुमने,
तब हँसा था मैं,
कुछ समझ नहीं पाया था,
आज आँखे भारी होती है,
जब वो पिजरा याद आता है;
नोटों से भरा थैला लेकर,
जब अपने दरवाजे पर पंहुचा मैं,
मेरे बूढ़े घर ने कुछ कहा की रो पड़ा मैं;
जिसे मिट्टी का खंडर कह कर,
छोड़ आया था,
कुछ बाकी नहीं रहा इसमें,
चिल्लाकर बोल आया था;
जब लौटा वहाँ तो,
उसने बाहें खोल दी,
जो कैद थी उसमे याँदे,
मेरे पुरखों की बोल दी,
सुख की ख्वाइश में,
मैं सुकून छोड़ आया था,
मै चाँदी कमाने निकला था,
हीरा छोड़ आया था।
One of your best 😃
जवाब देंहटाएंThanks neelam
हटाएंAwsome.
जवाब देंहटाएंThanks prakee
हटाएंvery heart touching yaar... excellent😓
जवाब देंहटाएंThanks sonal
हटाएंBadhiya bhai
जवाब देंहटाएंThanks aman
जवाब देंहटाएंNice one....
जवाब देंहटाएंNice one bhaii....
जवाब देंहटाएंthanks bhai
हटाएंBahut acche bhai...
जवाब देंहटाएंthanks vikram bhai
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 😘
जवाब देंहटाएंthanks bhai
हटाएंHum sub ke hisse ke kadwe sach!!!
जवाब देंहटाएंyes di
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