शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

मेरी डायरी

ई मुद्दतो से सुना नहीं 
कोई लफ्ज तेरे लबों से,
कलम मेरी अड़ के बैठी है 
की मुझे आगे मत लिखाओ;

डायरी कहती है की 
कोरा रहना मंजूर है,
कहानी अधूरी ही अच्छी है, 
आगे मत बढ़ाओ;
मैं भी उसी की हूँ ,
जिसका दिल है तेरा,
कुछ और लिख कर मुझे,
किसी और का मत बनाओ;

जहाँ का इश्क़ और है, 
तेरी यारी और है,
यक़ीनन बहुत होंगे तेरे अच्छे दोस्त;
पर उनकी बात और है, मेरी कहानी और है;

मेरे दिलोदिमाग पर हुकूमत है तेरी,
तेरी बात और है, तेरी निसानी और है;
चाह कर भी निज़ात मुमकिन नहीं जिससे,
जैसे कब्ज़ा करना और है, तख़्त-ए-सुल्तानी और है;..

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