अपने दिल को जला कर ख्वाब पालते देखा है,
ये इश्क़ की बिसाद है,
यहाँ मैंने खुदा बदलते देखा है;
मगर भीग जाता है;
सच है की उसे बारिश में देखना अच्छा लगता है,
बीमार है, मगर कहता है,
मुझे भीगना अच्छा लगता है;
समां को किसी बहाने से छूना अच्छा लगता है,
पर पतंगा जल के कहता है,
मुझे जलना अच्छा लगता है;
किस तलवार पर मुनासिब है मेरी गर्दन बता दो,
इश्क़ करना गुनाह है तो मुझे सजा दो,
यूँ मरने की ख्वाइश आशिक तमाम रखता है;
दोस्त इश्क़ यारियाँ नहीं रखता,
गुलाम रखता है;
ये इश्क़ की बिसाद है,
यहाँ मैंने खुदा बदलते देखा है;
मुशाफिर जो इश्क़ के नक्से पर जाता है,
वो छाता लेकर तो जाता है,मगर भीग जाता है;
सच है की उसे बारिश में देखना अच्छा लगता है,
बीमार है, मगर कहता है,
मुझे भीगना अच्छा लगता है;
समां को किसी बहाने से छूना अच्छा लगता है,
पर पतंगा जल के कहता है,
मुझे जलना अच्छा लगता है;
किस तलवार पर मुनासिब है मेरी गर्दन बता दो,
इश्क़ करना गुनाह है तो मुझे सजा दो,
यूँ मरने की ख्वाइश आशिक तमाम रखता है;
दोस्त इश्क़ यारियाँ नहीं रखता,
गुलाम रखता है;
Nice poem mohit.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद Nilesh bhai
हटाएंJio shera. Jila diya
जवाब देंहटाएं- SKR
धन्यवाद saurabh
हटाएं"Yeah Ishq ki bisad hai, yahan Maine khuda badalte dekha hai"
जवाब देंहटाएंSahi farmaya hai janaab
धन्यवाद
हटाएंAwesome!
जवाब देंहटाएंReally heart touching.DIL SE DIL TAK
thanks yoshi bhai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद Mannu
जवाब देंहटाएंSuperb....
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंbahut badhiya bhai
जवाब देंहटाएंThanks bhai
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