बहुत नाजुक सा है लम्हा,
बहुत नाजुक है ये रिस्ता,
उस पर हक़ नहीं मेरा,
समझ में क्यों नहीं आता ?
ये चाँद जो कल तलक,
इतना प्यारा लगता था,
ये दाग भी था उसमे,
नजर में क्यों नहीं आता ?
ये क्या बच्चो सी ज़िद है,
ये कैसे आंसू आ गए,
इतना नया लिवास है,
कुछ पसंद क्यों नहीं आता ?
मेरा दिल टूटा है,
मेरा यार रूठा है,
दर्द इतना ज्यादा है,
मैं सह क्यों नहीं पाता ?..
बहुत नाजुक है ये रिस्ता,
उस पर हक़ नहीं मेरा,
समझ में क्यों नहीं आता ?
ये चाँद जो कल तलक,
इतना प्यारा लगता था,
ये दाग भी था उसमे,
नजर में क्यों नहीं आता ?
ये क्या बच्चो सी ज़िद है,
ये कैसे आंसू आ गए,
इतना नया लिवास है,
कुछ पसंद क्यों नहीं आता ?
मेरा दिल टूटा है,
मेरा यार रूठा है,
दर्द इतना ज्यादा है,
मैं सह क्यों नहीं पाता ?..
अलौकिक रचना, दिल से दिल तक।
जवाब देंहटाएंthanks mannu
हटाएंBeautifully written....Good job👍
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