रविवार, 12 फ़रवरी 2017

शब्द

हम जिसे चाहते है , उसको एक बात बोलने से पहले कई बार सोचते है ,की उसे पसंद आएगा या नहीं , कहीं वो बुरा तो नहीं मान जाएगी , कहीं वो दूर तो नहीं हो जाएगी और कभी वो बात बोल नहीं पाते , जो वास्तविक में बोलना चाहते हैं।  हम अक्सर सोचते है , की कुछ ऐसा बोले की वो समझ जाये  की हम  उसे कितना चाहते  है ,पर वो क्या है  हमें पता नहीं होता। 
 यह कविता इसी सन्दर्भ में है ,अगर आपके साथ कभी ये हुआ है , तो  यह कविता आपको जरूर पसंद आएगी। ...

यूं तो मैं एक रसिक कवि हूं,
पर  मैं जो आज बोल रहा हूं,
मेरे जहन में एक दुविधा है,
मैं वो राज खोल रहा हूं;

मैंने इंग्लिश, हिंदी, भोजपुरी,अवधी ,भाषा पढ़ी है,
पर जिस बात पर मेरी जिव्हा अड़ी है,
जिस बात पर मेरी लेखनी कई दिन से मौन है,
और मेरी डायरी पूछ रही की वो कौन है;

कई शब्द लिखे मैंने,
कई शब्द नकार दिए,
कई पन्ने नए उठाये,
कई पन्ने फाड़ दिए;

जो मेरी प्रेमिका है,
और मेरा पहला प्रेम है,
मैं चाहता हूं उसे बताना,
की वो कितनी अहम् है;

मैं आज एक प्रेम पत्र लिख रहा हूं,
इन सब भाषाओ में एक शब्द ढूढ रहा हूं,
जिसमे शामिल मेरे अंतरंग की बात हो,
जिसमे छुपा मेरे मोहब्बत का साथ हो,
जिसमे बयां मेरे इश्क़ की हद हो,
और जिसमे बयां मेरे सारे खत हो;

वो शब्द जो कृष्णा ने राधा से कहा था,
वो शब्द जो हीर ने रांझे से कहा था;

एक शब्द जिसमे न चाँद हो, न दिन हो, न रात हो,
एक शब्द जिसमे सिर्फ उसकी बात हो,
एक शब्द जिसमे उसे एहसास हो,
की ऐ मेरी दिलरुबा ! तुम कितनी ख़ास हो;

आज मैंने प्रेम की सारी किताबे छान ली,
जो ग़ालिब ने कहा, जो मीर ने कहा,
सबकी सुनी, सबकी मान ली,
पर वो अल्फाज कहीं मिलता नहीं;

काश उन किताबो को मजनू ने खुद लिखी होती,
काश कृष्णा ने प्रेम की भी की एक गीता कही होती,
 सोचता हूं रांझे ने खत में क्या लिखा होगा,
अब समझ आता है हीर लिखा होगा,
और बस हीर लिखा होगा;

जब ली करवटें रेत में,तड़फ कर मजनू ने,
महलो में थी लैला,फिर भी न सो सके,
कोरा कागज भी भेजा होगा, हीर ने अगर,
मुमकिन नहीं होगा की राँझा न पढ़ सके;

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