शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

सड़क

मेरा तो दिल दुःख उठता है तुझे देखकर,
एक गुमनाम सी सड़क,
आते जाते हजारो मुशफ़िर;

एक बात बता ऐ सड़क !,
क्या तेरी साँसे नहीं रुकी किसी के लिए ?
क्या तेरी धड़कनो ने किसी का इन्तजार नहीं किया ?

वो राही जो कल गुजरा था,
वो राही जो आज गुजरा था,
वो राही जो रोज गुजरता है;

क्या तूने कभी नहीं चाहा,
उसके दिल में छुप जाना,
उसके छाती से लग जाना,
उसके कदमो से लिपट कर,
उसे रोक लेना;

क्या हक़ था उसे तेरा दिल दुखाने का ?
वो समझता है, तू थकी नहीं अबतक,
उसे रोज-रोज उसके मंजिल पहुँचाते-पहुँचाते;
क्या दिया उसने तुझे कदमों की चोट सिवा ?

देख वो तेरी काली साड़ी,
पुरानी होकर फटने लगी है,
मेरा तो दिल दुःख उठता है तुझे देखकर;
रोज सुबह सुबह वीराने में खड़ा,
जब मै देखता हूँ,
तेरा रोज-रोज उसके घर के बाहर आना,
उसे घर से बुलाना,
कदम-कदम राह बताकर,
उसकी चाहत से उसे मिलाना;
वो पत्थर दिल जब उस अपनी चाहत से मिलता है,
दिल नहीं छिल जाता तेरा, उसकी बेवफ़ाई देखकर ?

क्यूँ बिछा रखा है तूने, 
उसके  लिए अपना आँचल ?
क्या वो गर्म धूप तुझे दर्द नहीं देती ?
क्यूँ समेट नहीं लेती तू अपना आँचल ?
मेरा तो दिल दुःख उठता है, तुझे देखकर,

क्यूँ  गुमशुम सी है, कुछ कहती नहीं?
ख़त्म हो गयी या भूल गयी,
वो कल वो परसो वो वर्षो की शिकायत,
जो तुझे उस राही थी;

क्यूँ हैरान है तू मुझे देखकर,मुझे सुनकर ?
हाँ, मैं ही हूँ  वो राही जो कल गुजरा था,
हाँ, मैं ही हूँ  वो राही जो रोज गुजरता है,
हाँ, मैंने देखा था वो आँसू जो तेरी आँखों से गिरा था,
मुझे याद है वो रात जिस दिन थककर गिरा था 
मै तेरे आँचल में,
तेरे कहने पर वो तेरा शखा आंसमा,
कैसे नीले छींट की चादर मुझे उढ़ा दिया था,
और वो तेरी सहेली यामिनी, 
कैसे ठन्डे समीर का,पंखा झेल रही थी,
कैसे तूने मुझे अपने आँचल में समेट रखा था,
और कैसे तेरी सखी उषा सुबह मुझे उठा रही थी,
तेरे कहने पर,

मेरा तो दिल दुःख उठता है तुझे देखकर || 

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