सुनो!! क्या सच में मिलेंगे हम, कभी;
उस तरह ही कि जैसे आज मिली हो;
या उस तरह की जैसे मिली नहीं कभी;
या की सच ये कुछ पल का ही सच है
और बिछड़ रही हो तुम मुझसे बादलों से बूंद की तरह;
याकी तेरे आंखों का काजल
अब ना सवारूँ मैं,
तुम्हारे जुल्फों की गिराहें
अब मेरे छेड़ने के लिए नहीं है?
अगर है ऐसा तो क्या इतना हक़ भी नहीं है
बता सको मजबूरी इतना वक़्त भी नहीं है
सुनो!!
मेरी वफ़ा की कीमत कुछ अदा करोगी क्या
मैं गर पुछु कुछ तो सच बयां करोगी क्या
क्या सच मे कोई मजबूरी है
या तेरा इरादा बदल गया है
याकि तेरा सजदा बदल गया है
या बस खुदा बदल गया है।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें