चल पड़े वो महफ़िल छोड़ कर,
बात जो ठक से लगी,
कबसे दबा के रखी थी,
वो बात लब पर आ गई,
शहर में सरे आम थे
उनकी वफ़ा के चर्चे कभी,
जो अपनी जबानी हमने कही
तो हर बात से कतरा गईं
खाई थी कसमें मेरी
झूठे इश्क़ की दिन रात जो
जब महफूज देखा मजनू को
तो लैला बहुत घबरा गई,
न शहर में नीलाम हो
ये इश्क़ का जुनून कभी
हम वही चुप हो गए
जो ये बात जहन में आ गई
ये इश्क़ उमर की चीज़ है
पर है बचपना इसमें भरा,
जब भी सयाना बना इश्क़
बात पर्दे से सड़क पर आ गई,
बहुत सस्ते में बिका महलो में
कभी,अनमोल झोपड़ों में रहा,
कभी लगे सौ साल तो
कभी इक पल में समझ मे आ गयी।।
******💘*******
बात जो ठक से लगी,
कबसे दबा के रखी थी,
वो बात लब पर आ गई,
शहर में सरे आम थे
उनकी वफ़ा के चर्चे कभी,
जो अपनी जबानी हमने कही
तो हर बात से कतरा गईं
खाई थी कसमें मेरी
झूठे इश्क़ की दिन रात जो
जब महफूज देखा मजनू को
तो लैला बहुत घबरा गई,
न शहर में नीलाम हो
ये इश्क़ का जुनून कभी
हम वही चुप हो गए
जो ये बात जहन में आ गई
ये इश्क़ उमर की चीज़ है
पर है बचपना इसमें भरा,
जब भी सयाना बना इश्क़
बात पर्दे से सड़क पर आ गई,
बहुत सस्ते में बिका महलो में
कभी,अनमोल झोपड़ों में रहा,
कभी लगे सौ साल तो
कभी इक पल में समझ मे आ गयी।।
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